किसी भी राष्ट्र के अभिशासन का सबसे प्रमुख मुद्दा उसकी प्रभुसत्ता की सुरक्षा करना व उसे संपोषित करना हे। देश में किसी भी प्रकार की उन्नति या विकास तब तक संभव नहीं जब तक देश की भौगोलिक सीमाएं बाहरी आक्रमण से सुरक्षित न हो। यह भी आवश्यक हे कि समाज की शांति और समरसता आंतरिक झगडों से भंग र हों । भारत एक बहुभाषीय ; बहुजातीय तथा बहुधार्मिक संघीय व्यवस्था है । इस प्रकार यह विभिन्न संस्कृतियों व जीवन शैलियों का संगम है।ऐसे समाज की सुरक्षा व समुन्नति के लिए यह आवश्यक है इसके सदस्य सामूहिक चेतना की डोर में बंधे रहें;अर्थात एक संगठित राष्ट्र के प्रति समर्पित हों । राष्ट्र की यह भावना ही विभिन्न संस्कृतियो को परस्पर जोड़ती है ।
इस दिशा में भारत विश्व के सामने एक ऐसे समाज का उदाहरण प्रस्तुत करता है जहां की व्यवस्था को हमारे कुछ सामूहिक उद्देश्य एकजुट बनाये रखते हैं तथा बृहद समाज के कल्याण हेतु आपसी संगठित समाज सहयोग की भावना उसे सम्पोसित करती है । भारत ने विश्व को दर्शाया है कि राष्ट्रीय तथा लोकतांत्रिक सिद्धांतों की सहायता से विभिन्न भाषा-भाषी ;विभिन्न धर्मावलंबी ;विभिन्न जातियों व विभिन्न जीवन शैलियों में विश्वास रखने वाले लोग भी परस्पर मिल जुल कर रह सकते हैं और अपने को एक जुट बनाये रह सकते हैं । परंतु आज कल बिघटन की प्रवृत्ति से देश परेशान है । राष्ट्रीय सन्दर्भ में यह विघटन एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ;क्योकि यह उन सम्बंधो के बिखराव का सूचक है जोकि एक सन्सक्त समूह के घटकों के लिये अतिआवश्यक है । बिघटन एक धीमी प्रक्रिया है और इनके अनेक लक्षण हैं । ये लक्षण वर्तमान भारत में स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं ।जो निम्न हैं ----1-राष्ट्रीय चेतना की कमी : राष्ट्रवाद की भावना केवल "विशिष्ट शिक्षित वर्ग ' तक ही सीमित है ।साधारण व्यक्ति राष्ट्रवाद के समग् महत्व से परिचित नहीं है ।वह तो अपनी रोटी-रोजी के झंझट में ही उलझा रहता हे।.
2-बढती हुई क्षेत्रीय संकीर्नता तथा भाषा संबंधी प्रान्तियता : एक विशेष प्रान्त में रहने वाले लोग एक विशेष भाषा का प्रयोग करते हैं ।उनकी जीवन शैली संबंधी मानक और रीति रिवाज या धार्मिक कर्मकांड भी विशेष प्रकार के होते हैं । इस कारण उनके ऐसे छोटे -छोटे समूह या समुदाय बन जाते हैं जो आपस में तो पूर्ण संगठित होते हैं परंतु देश के अन्य भारतियों से अलग अलग हो जाते हैं ।
3-जातिवाद तथा सांप्रदायिकता :राष्ट्रवाद के विकास में संभवतः ये सबसे बडी बाधायें हैं ।. यद्यपि जात-पात ;नस्ल पन्थ व धर्म सामाजिक एकरसता के साधन हैं परंतु कभी -कभी रूढिवादी समूहों के विकास को प्रोत्साहित करते हैं ;परस्पर विचारधाराओं तथा जीवन शैली के विरोधीहोते हैं।
4-उचित नेतृत्व का अभाव: आधुनिक भारत इस व्याधि से ग्रस्त हो रहा है । अनियंत्रित राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन की ओर से विमुखता बढती है और विकास योजनाएं असफल हो जाती है।